आगे जो जानकारी में आप को देने जा रहा हु वह ऐतिहासिक भी है चोकाने वाली भी है और जरूरी भी है। यह बात स्व. श्री राजीव दीक्षित जी ने कही थी उनकी मृत्यु के काफी समय पहले।
आप स्व. श्री राजीव दीक्षित जी के बारे में Google पर अथवा Wekepedia पर सर्च कर सकते है।
सन 1911 में जब जॉर्ज पंचम भारत आए थे क्योंकि तब अंग्रेजो ने देहली को भारत की राजधानी घोषित किया था (पहले कोल्कता था) तो तब अंग्रेजो ने रबिन्द्र नाथ टैगोर को पकड़ा और उनसे एक गीत लिखवाया (तब रबीन्द्रनाथ जी को अंग्रेजों से सहानुभूति थी, क्योंकि उनके परिवार के काफी सदस्यों ने ईस्ट इंडिया कंपनी में काम किया था) जो गीत रबिन्द्रनाथ टैगोर ने उनके (जॉर्ज पंचम) के स्वागत में गया था वह गीत था "जण गण मन" तब जॉर्ज पंचम को कुछ समझ तो नहीं आया पर जब उन्होंने इसका अर्थ जाना तब उन्हों कहा की इतनी तारीफ तो कोई मेरी ब्रिटेन में भी नहीं करता और उन्होंने रबीन्द्रनाथ टैगोर को भारत रत्न पुरुस्कार देने का सोचा लेकिन रबिन्द्र नाथ टैगोर ने कहा की "मुझ पर एक कृपा कीजिये मुझे इस के लिए नहीं गीतांजलि के लिए भारत रत्न दीजिये" क्योंकि टैगोर खुद उस गीत को गाने व् लिखने के पक्ष में नहीं थे।
गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैं
जण गण मन अधिनायक - हिन्दुस्तान की जनता के मनो के अदिनायक(super hero)
जय हे - तुम्हारी जय हो
भारत भाग्य विधाता - तुम भारत के भाग्य के विधाता हो (जॉर्ज पंचम)
पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा द्रविड़ उत्कल बंग - हिन्दुस्तान
विंध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा। उच्छल जलधि तिरंग। - नदिया
तव शुभ नाम जगे, तव शुभ आशीष मांगे - पूरा हिन्दुस्तान एवं नदिया तुम्हारे विजय की कामना कर रहे है और तुम्हारे लिए आशीष मांग रहे है।
गए तव जय गाथा। - ये हम गाथा गया रहे है।
जन गण मंगलदयाक जय हे, भारत भाग्य विधाता - वही मतलब
जय हे, जय हे, जय हे, जय, जय, जय, जय हे। - तुम्हारी ही जय हो तुम्हारी ही जय हो।
यह तो इस गीत के बोल है, आपने कभी गोर नहीं किया होगा।
अब आप सोच रहे हे की हम इसे क्यों गा रहे है?
आपको में बताता हु
पहले कांग्रेस के दो दल बन गए थे "नरम दल" और "गरम दल"
नरम दल वह दल था जो अंग्रेजो के साथ मिल बाट के सर्कार बनाना चाहता था और गरम दल वह था जो पूरी तरह आजादी चाहता था।
तब बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम् निकाला लेकिन उनकी बेटी उनके पक्ष में नहीं थी क्योकि उसे लगता था की वनफे मातरम् के बोल क्लिष्ट है गाने वाले के समझ में ही नहीं आएँगे फिर 7 साल बफ बंकिम चंद्र चटर्जी ने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था "आनंद मठ" उस उपन्यास में उन्होंने वंदे मातरम् का वर्णन किया फिर वंदे मातरम् पूरा गरम दल गाने लगा हर जगह। और नरम दल हर जगह जन गण मन गता था। सभी लोगो ने वंदे मातरम् को पसन्द किया लेकिन नरम दल ने एक कीड़ा छोड़ दिया मुस्लिम जाती में की वंदे मातरम् में तो बुध्द की पूजा हे और यह बात सुनकर मुस्लिमो को बड़ा झटका लगा फिर मुस्लिम जन गण मन गाने लगे लेकिन जब राष्ट्र गान घोषित करने की बात आई तो सभी ने मना कर दिया की हमको तो जन गण मन जमता नही है और सब ने सोचा की वंदे मातरम् को ही राष्ट्र गान बनाया जाए। लेकिन एक आदमी को यह नही पसन्द था उसका नाम था प. जवाहरलाल नेहरू उन्होंने कहा की मुस्लिमो को इससे तकलीफ होती हे तो क्यू गया जाए लेकिन सबने कहा की नहीं वंदे मातरम् को बनाओ तब नेहरू ने कहा की "में कांग्रेस छोड़ दूंगा" तब पूरी कांग्रेस हक्का बक्का रह गई फिर सबने सोचा की अब क्या करे फिर सब गांधी जी के पास गए गांधी जी ने कहा की कोई तीसरा गीत निकालो तो सब ने कहा की आपही निकाल के देदो टी गांधी जी ने गीत बताया वह गीत था "विजयी विश्व तिरंगा हमारा, झंडा उचा रहे हमारा" लेकिन नेहरू जी को यह नही नहीं बेठा उन्होंने कहा की यह गीत औरकेस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गण मन बज सकता के।
तो इस तरह जन गण मन बज हमारे देश का राष्ट्र गान बन गया।
आपने अपना बहुमूल्य समय निकाल कर इस मेसेज को पड़ा आप सभी का बोहत बोहत धन्यवाद।
आप स्व. श्री राजीव दीक्षित जी के बारे में Google पर अथवा Wekepedia पर सर्च कर सकते है।
सन 1911 में जब जॉर्ज पंचम भारत आए थे क्योंकि तब अंग्रेजो ने देहली को भारत की राजधानी घोषित किया था (पहले कोल्कता था) तो तब अंग्रेजो ने रबिन्द्र नाथ टैगोर को पकड़ा और उनसे एक गीत लिखवाया (तब रबीन्द्रनाथ जी को अंग्रेजों से सहानुभूति थी, क्योंकि उनके परिवार के काफी सदस्यों ने ईस्ट इंडिया कंपनी में काम किया था) जो गीत रबिन्द्रनाथ टैगोर ने उनके (जॉर्ज पंचम) के स्वागत में गया था वह गीत था "जण गण मन" तब जॉर्ज पंचम को कुछ समझ तो नहीं आया पर जब उन्होंने इसका अर्थ जाना तब उन्हों कहा की इतनी तारीफ तो कोई मेरी ब्रिटेन में भी नहीं करता और उन्होंने रबीन्द्रनाथ टैगोर को भारत रत्न पुरुस्कार देने का सोचा लेकिन रबिन्द्र नाथ टैगोर ने कहा की "मुझ पर एक कृपा कीजिये मुझे इस के लिए नहीं गीतांजलि के लिए भारत रत्न दीजिये" क्योंकि टैगोर खुद उस गीत को गाने व् लिखने के पक्ष में नहीं थे।
गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैं
जण गण मन अधिनायक - हिन्दुस्तान की जनता के मनो के अदिनायक(super hero)
जय हे - तुम्हारी जय हो
भारत भाग्य विधाता - तुम भारत के भाग्य के विधाता हो (जॉर्ज पंचम)
पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा द्रविड़ उत्कल बंग - हिन्दुस्तान
विंध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा। उच्छल जलधि तिरंग। - नदिया
तव शुभ नाम जगे, तव शुभ आशीष मांगे - पूरा हिन्दुस्तान एवं नदिया तुम्हारे विजय की कामना कर रहे है और तुम्हारे लिए आशीष मांग रहे है।
गए तव जय गाथा। - ये हम गाथा गया रहे है।
जन गण मंगलदयाक जय हे, भारत भाग्य विधाता - वही मतलब
जय हे, जय हे, जय हे, जय, जय, जय, जय हे। - तुम्हारी ही जय हो तुम्हारी ही जय हो।
यह तो इस गीत के बोल है, आपने कभी गोर नहीं किया होगा।
अब आप सोच रहे हे की हम इसे क्यों गा रहे है?
आपको में बताता हु
पहले कांग्रेस के दो दल बन गए थे "नरम दल" और "गरम दल"
नरम दल वह दल था जो अंग्रेजो के साथ मिल बाट के सर्कार बनाना चाहता था और गरम दल वह था जो पूरी तरह आजादी चाहता था।
तब बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम् निकाला लेकिन उनकी बेटी उनके पक्ष में नहीं थी क्योकि उसे लगता था की वनफे मातरम् के बोल क्लिष्ट है गाने वाले के समझ में ही नहीं आएँगे फिर 7 साल बफ बंकिम चंद्र चटर्जी ने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था "आनंद मठ" उस उपन्यास में उन्होंने वंदे मातरम् का वर्णन किया फिर वंदे मातरम् पूरा गरम दल गाने लगा हर जगह। और नरम दल हर जगह जन गण मन गता था। सभी लोगो ने वंदे मातरम् को पसन्द किया लेकिन नरम दल ने एक कीड़ा छोड़ दिया मुस्लिम जाती में की वंदे मातरम् में तो बुध्द की पूजा हे और यह बात सुनकर मुस्लिमो को बड़ा झटका लगा फिर मुस्लिम जन गण मन गाने लगे लेकिन जब राष्ट्र गान घोषित करने की बात आई तो सभी ने मना कर दिया की हमको तो जन गण मन जमता नही है और सब ने सोचा की वंदे मातरम् को ही राष्ट्र गान बनाया जाए। लेकिन एक आदमी को यह नही पसन्द था उसका नाम था प. जवाहरलाल नेहरू उन्होंने कहा की मुस्लिमो को इससे तकलीफ होती हे तो क्यू गया जाए लेकिन सबने कहा की नहीं वंदे मातरम् को बनाओ तब नेहरू ने कहा की "में कांग्रेस छोड़ दूंगा" तब पूरी कांग्रेस हक्का बक्का रह गई फिर सबने सोचा की अब क्या करे फिर सब गांधी जी के पास गए गांधी जी ने कहा की कोई तीसरा गीत निकालो तो सब ने कहा की आपही निकाल के देदो टी गांधी जी ने गीत बताया वह गीत था "विजयी विश्व तिरंगा हमारा, झंडा उचा रहे हमारा" लेकिन नेहरू जी को यह नही नहीं बेठा उन्होंने कहा की यह गीत औरकेस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गण मन बज सकता के।
तो इस तरह जन गण मन बज हमारे देश का राष्ट्र गान बन गया।
आपने अपना बहुमूल्य समय निकाल कर इस मेसेज को पड़ा आप सभी का बोहत बोहत धन्यवाद।